जब लव्ज़ हो जाएँ ख़तम
लगता है अधूरी रेह गाई है कोई कहानी
पर शायद अटका हुआ है कोई एहसास
कोई भावना कहीं और अभी बची है सुनानी
एक पेड़ जिस तरह से हर मौसम में है बदलता
मेरा भी शायद हाल वही है
पत्ते हैं झगड़ते, डालियाँ हैं लड़ती
जब जो रंग चाहो तभी वोह नहीं है
कभी खिलते हैं कहीं फूल सुहाने
कभी मिलता है किसी मेहनत का फ़ल
कभी जड़ें हैं करती जल की लालसा
और कभी मनन के भवरे हैं बनते चंचल
जब हवा का झोंका है आता
ले जाता है सब कुछ अपने साथ
एक तेज़ बिजली जब गरजी
सूनी लगने लगती है हर कोई वोह रात
लालच होता है फिर भी बन्ने का महान
वो हरा भरा वृक्ष जिसमें हों हर एक गुण भरपूर
चाहे कोई काटे, या झंजोड़े उसकी खुद कि जड़ें
सदैव रहे उसके तने में वोह नूर
उड़ना है शायद इसे, और शायद है जुड़े भी रहना
हैना?
लगता है अधूरी रेह गाई है कोई कहानी
पर शायद अटका हुआ है कोई एहसास
कोई भावना कहीं और अभी बची है सुनानी
एक पेड़ जिस तरह से हर मौसम में है बदलता
मेरा भी शायद हाल वही है
पत्ते हैं झगड़ते, डालियाँ हैं लड़ती
जब जो रंग चाहो तभी वोह नहीं है
कभी खिलते हैं कहीं फूल सुहाने
कभी मिलता है किसी मेहनत का फ़ल
कभी जड़ें हैं करती जल की लालसा
और कभी मनन के भवरे हैं बनते चंचल
जब हवा का झोंका है आता
ले जाता है सब कुछ अपने साथ
एक तेज़ बिजली जब गरजी
सूनी लगने लगती है हर कोई वोह रात
लालच होता है फिर भी बन्ने का महान
वो हरा भरा वृक्ष जिसमें हों हर एक गुण भरपूर
चाहे कोई काटे, या झंजोड़े उसकी खुद कि जड़ें
सदैव रहे उसके तने में वोह नूर
उड़ना है शायद इसे, और शायद है जुड़े भी रहना
हैना?
_ Diary of an Oxymoron
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