Monday 21 July 2014

बिखरे हुए लव्ज़

पंख भले ही न हों मेरे दामन में
पर उड़ना सीख लिया है
कौन कहता है ज़रूरी है की कोई हवा चले
उड़ान भरने के लिए हौंसला ही काफी है

नसीब की बातें न करिये आज
ऐसा न हो की खुद पे से विश्वास ही उठ जाये
हाथों की लकीरों का क्या कुसूर
हिम्मत तोह बिना हाथ वालों में भी बहुत है

एक ज़ालिम समाज है
जिसको कोसते कोसते हम थकते नहीं
और एक यह ज़ालिम दिल है हमारा
की सवालों के जवाब में खुद को चोट पहुचता है

कुछ लकज़ आज फिर हैं बिखरे हुए
जैसे वक़्त ने सवालों का डिब्बा है खोला
दर्द है की सिमट नहीं रहा
और कमभक्त ढक्कन ही गायब हो गया है

रुकते नहीं हैं जो समय के यह पल
वैसे ही थम नहीं पा रही है मेरी उलझन
कुछ तोह मेरा कुसूर ज़रूर होगा
वरना ऐसा ज़ुल्म? हाय तौबा

रौशनी जो आज दिख रही है
वह है किसी बादल के गरजने की चमक
अपने आप को समेटे रखना है
एक दिन तोह उजाला भी चेहरा दिखायेगा

- Diary of an Oxymoron

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