Friday 12 December 2014

गुम्बद

एक पत्थरों का गुम्बद है
और पंछियों का सुर है गूँज रहा
एक कहानी है जो लिखी नहीं गई
और एक सुनाने को मन मचल रहा

रंगीन इस शहर में
क्यों सफ़ेद और काला है यह पल
रूकते हुए जैसे कोई ग़ज़ल
आज शुरू होने को है

एक तो पत्थरों के हैं यह लोग अनेक
और बंजर इनका मन है बन गया
एक कविता है जो नहीं बनी
और एक अधूरा ख़्वाब है करवट बदल रहा

एक रौशनी की किरण
और अँधेरी कोठरी
एक खुला आसमान
और एक बंद दरवाज़ा

- Diary of an Oxymoron 


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