Friday 21 February 2014

Diary of an Oxymoron

जब लव्ज़ हो जाएँ ख़तम
लगता है अधूरी रेह गाई है कोई कहानी
पर शायद अटका हुआ है कोई एहसास
कोई भावना कहीं और अभी बची है सुनानी

एक पेड़ जिस तरह से हर मौसम में है बदलता
मेरा भी शायद हाल वही है
पत्ते हैं झगड़ते, डालियाँ हैं लड़ती
जब जो रंग चाहो तभी वोह नहीं है

कभी खिलते हैं कहीं फूल सुहाने
कभी मिलता है किसी मेहनत का फ़ल
कभी जड़ें हैं करती जल की लालसा
और कभी मनन के भवरे हैं बनते चंचल

जब हवा का झोंका है आता
ले जाता है सब कुछ अपने साथ
एक तेज़ बिजली जब गरजी
सूनी लगने लगती है हर कोई वोह रात

लालच होता है फिर भी बन्ने का महान
वो हरा भरा वृक्ष जिसमें हों हर एक गुण भरपूर
चाहे कोई काटे, या झंजोड़े उसकी खुद कि जड़ें
सदैव रहे उसके तने में वोह नूर

उड़ना है शायद इसे, और शायद है जुड़े भी रहना
हैना?

_ Diary of an Oxymoron 

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