Tuesday 4 March 2014

वोह एक प्याली चाय

बैठे हों जब हम यारों के साथ
या फिर कहीं किसी कमरे में अकेले
याद बन जाती है हर एक बात
हो अगर वोह एक प्याली चाय

कभी शरीर के बिखरे हुए हिसों को है देती राहत
कभी दिमाग का हर एक कोना है जगाती
दवाई बन जाती है कुछ लम्हों के बाद
हो अगर वोह एक प्याली चाय

किसी पहाड़ पे हों बैठे हम
या किसी कमरे में ले रहे हों बारिश का मज़ा
इतिहास बन्न जाती है चाहे हो थोड़ी कम
हो अगर वोह एक प्याली चाय

फिर भले ही बाटना पड़े किसी के साथ
या फिर बिमारी में खुद ही बना कर हो पीनी
देती है साथ सुबह हो या दिन, शाम हो या रात
हो अगर वोह एक प्याली चाय

माँ के हाथ का प्यार
या फिर उस ठेले वाले का हो कमाल
अनजान के साथ करवाती है पहचान
हो अगर वोह एक प्याली चाय

किसी को चीनी चाहिए कम
कोई लेता है कड़क पन के साथ
स्वाद का एहसास बन्न जाती है हर दम
हो अगर वोह एक प्याली चाय

दुःख में, सुख में
दिन हो या रात
मेरे लिए हर पल है जग जाता
हो अगर वोह एक प्याली चाय

-Diary of a PhD Scholar 

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