Saturday 15 March 2014

कुछ भी …..

बेचैन होना भी एक नशा है
कभी चख के देखो तोह ज़रा
चैन मिलता है जब कुछ पल के लिए
जान निकल जाती है!

कुछ भी ---------------

कहानियां कई हैं
इस बंजर ज़मीन में हुई दबी
खोदने कि हिम्मत चाहिए
खज़ाना मिलना फिर दूर कहाँ

कुछ भी ---------------

कहानियोंकी जुबां की
होती नहीं कोई भाषा 
सुनो तोह उन्हें ध्यान से
डूबने के लिए क्या ज़रुरत किसी शब्द कि 

कुछ भी ---------------

आज सुनी जो है कहानी 
तुमने मेरी मूक ज़ुबानी 
काम न भले आये अभी 
सोच में दाल देगी आगे कभी 

कुछ भी ---------------

कहीं दूर जब 
किसी रानी की
कोई सुनान रात।

क्या ऐसे शुरू हुई थी कोई तुम्हारी बात?

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